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Thursday, August 27, 2009

मेरा जीवन

बहुतों ने कहा की इरफान अपनी कथा सुनाओ पर मैं हमेशा टालता रहा। मैंने सोचा अपने जीवन का चिटठा क्यूं किसी के सामने खोलूँ पर अब लगता है की किसी दोस्त को बताने से ज़िन्दगी का एक बहुत बड़ा बोझ उतर जाएगा। मेरा जन्म पता नहीं कब हुआ पर इतना पता है की दिल्ली की किसी गली के एक घर मैं ही हुआ। मेरा नाम था- फुरकान। बाद मैं मेरा नाम बदला गया वोह मैं बाद मैं बताऊंगा की मेरा नाम बाद में क्यूं बदला गया? मैं बचपन से ही थोड़ा हट कर हूँ। हल्का सा शर्मीला पर मितभाषी पर जब बोलना शरू करूँ तो किसी को भी नहीं बख्शता। अपने बचपन से ही बहुत ज़हीन मन जाता था। जब घर पर मैंने बहुत तेज़ी से स्कूल की किताबें यद् करना शुरू कर दिया तौ मेरी मन को लगा की मैं हाफिज़ बन सकता हूँ। वैसे मेरी मान ने मेरे पैदा होने से पहले ये मन्नत मांगी थी की अगर लड़का हुआ तो वो उसे अल्लाह की रह में हमेशा के लिए भेज देंगी। ये शायद उनकी किस्मत थी या मेरी बदकिस्मती की मैं पैदा हो गया। सिर्फ़ पाँच साल का था मैं जब मेरी मान ने मुझको मदरसे में दाखिल कर दिया। मदरसा एक हॉस्टल होता है जहान्बच्चे इस्लाम की तालीम हासिल करने के लिए आते हैं। पहले दिन से ही मुझको लगा yeh जगह मेरे लिए नहीं है पर ammi की बात मानने के सिवा और कोई भी चारा नहीं था क्यूंकि हमारे यहाँ मान की बात मानना फ़र्ज़ माना जाता है।

4 comments:

  1. अच्छा लगा आपको पढ़्कर.

    चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.

    गुलमोहर का फूल

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  2. Theek ja rahe ho bhai,apne mun ko saaf saaf abhivyakti depana hi rachna ka dharm hai.
    Yours,
    dr.bhoopendra

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  3. चलिये बढ़िया है स्वागत है

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