मैं आम रहना चाहता हूँ।
न कोई महानशख्सियत
के जन मूर्त बना पूजा करें।
मैं आम रहना चाहता हूँ
न कोई महानशख्सियत
कि गाँधी सम लोग थूका करें।
मैं आम रहना चाहता हूँ
न कोई महानशख्सियत
कि तारीफ़ मिले सिर झुका करे।
मैं आम रहना चाहता हूँ
न कोई महानशख्सियत
कि कर सकूं खता, ज़माना जुबान खोला करे।
मैं आम रहना चाहता हूँ
न कोई महानशख्सियत
कि खुदगर्ज़ माता- पिता छोड़ा करे।
मैं आम रहना चाहता हूँ
न कोई महानशख्सियत
कि परहित में निज को तोडा करे।
मैं आम रहना चाहता हूँ न कोई महानशख्सियत
यूँ नहीं कि डर लगता है प्रतिस्पर्धा से!
मैं आम रहना चाहता हूँ न कायर किरदार कोई
कि गला काट ,,, में; इंसानियत निचोडा करे।
-इरफान
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