कहाँ से आई बातें खुदा की
कि सागर से कोई हीरा मिला है।
सागर नयन किसी के अब हँस के आँखें ही रों ई ,
कोई गीला गिला है।
तीन मर्तबा सिजदे में , था करता तेरी बड़ाई।
तेरी जो कि खुदाई, उनसे हुई जुदाई।
यादों में आज उनकी , कतरा यूँ ही गिरा है।
सिजदे में गिर के सर ये ऊपर नहीं उठा है।
अरसा में खुदी पकड़कर पग को थमा रखा था।
जुदा होकर जुदाई से मैं ख़ुद से जुदा हुआ था।
जुदाई को फिर से मैंने भूलों से छु लिया है।
ख़ुद का फ़साना अब तो किस्मत को दे दिया है।
कहाँ से आईं बातें खुदा
की कि सागर से कोई हीरा मिला है।
सागर नयन किसी के,
अब हँस कर आँखें ही रोई,
कोई गीला गिला मिला है।
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